नई दिल्ली: अखिलेश और मुलायम सिंह के बीच टकराव की कहानी वैसी नहीं है जैसी दिखाई दे रही है. इसकी एक एक इबारत के बीचे बड़ी बड़ी स्क्रिप्ट छिपी हुई है. समाजवादी पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक ये बाप बेटे की नूरा कुश्ती तो है लेकिन इसका मकसद चुनावी जीत से ज्यादा ब्लैकमेलिंग के शिकंजे से निकलने का था.
इन सूत्रों का कहना है कि मुलायम सिंह के खिलाफ कुछ पुख्ता सबूत मुलायम के करीबी और पार्टी से बाहर कर दिए गए एक नेता ने बीजेपी के कुछ खास नेताओं को दिए. इन सबूतों के आधार पर मुलायम सिंह को बार बार बीजेपी के पक्ष में काम करने के लिए मजबूर किया गया. गुजरात में कांग्रेस के मुकाबले उम्मीदवार उतारने का फैसला भी इसी दबाव का नतीजा बताया जा रहा है. जानकारों का कहना है कि मुलायम का ये रवैया उनकी सामान्य राजनीति और प्रतिक्रिया के खिलाफ था. वो बीजेपी को फायदा पहुंचाने का काम कर रहे थे.
इन सूत्रों का कहना है कि मुलामय सिंह आम तौर पर सांप्रदायिकता के खिलाफ राजनीति करते हैं लेकिन मुजफ्फर नगर चुनाव में वोटों की बंदरबांट के पीछे भी यही दबाव काम कर रहा था. इन लोगों का कहना है कि इसी दबाव में मुलायम सिंह ने उस नेता को पार्टी मे वापस लिया.
सूत्रों का कहना है कि मुलायम सिंह को जिस नेता ने फंसाया वो ही उसे बचाने के नाम पर उनका तारणहार बन गया.
इन सूत्रों के मुताबिक मुलायम सिंह इस नेता के लगातार दबाव में थे और वो पूरा जीवन राजनीति में देने के बावजूद अंतिम समय में कलंक लगवाना नहीं चाहते थे.
इस पूरे खेल के बीच जब यूपी का चुनाव आया तो पार्टी के पास सबसे बड़ी चुनौती थी चुनाव में यूपी की सल्तनत बचाना. मुलायम सिंह के रहते पार्टी हमारा दबाव में थी. बीजेपी के हाथों उत्तर प्रदेश सौंपे जाने के आलावा कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था.
इस पूरे घटनाक्रम के बीच अखिलेश यादव परेशान थे. उन्होंने पूरा प्लान बनाया इस प्लान में परिवारे को चार अहम लोगों के अलावा किसी को शामिल नहीं किया गया.
सूत्रों की मानें तो इस प्लान में उन्होंने राहुल गांधी से चर्चा की . एक डर था राहुल ने कहा वो हर समय अखिलेश के साथ है. इसके बाद अखिलेश ने मोर्चा खोल दिया. डर था कि किसी भी हालत में अगर मुलायम और शिवपाल के साथ ज्यादा लोग चले गए तो पार्टी संकट में पड़ जाएगी. इसलिए अखिलेश ने राहुल गांधी से मदद ली. राहुल को पूरा किस्सा तो नहीं बताया गया लेकिन उनसे कहा गया कि हम साफ सुधरी राजनीति के मुद्दे पर अलग हो रहे हैं. क्या वो साथ देंगे. राहुल के आश्वासन के बाद अखिलेश सक्रिय हो गए.
बाद में मुलायम सिंह को भी इस खेल मे मज़ा आने लगा और उन्होंने पूरी बाज़ी पलट दी. अब ब्लैकमेलिंक करने वाले नेता के प्रभावों से पार्टी मुक्त है. क्योंकि मुलायम को जेल में डालने से भी समाजवादी पार्टी के भविष्य पर असर नही पड़ेगा. पार्टी सभी दबावों से मुक्त हो गई है.
अब मुलायम पर कार्रवाई के डर से समाजवादी पार्टी को डराया नहीं जा सकता. पार्टी में सत्ता का हस्तांतरण अखिलेश यादव को हो गया है. ब्लैकमेलिंग की राजनीति में अखिलेशे को फंसाने के लिए अब नये सिरे से खेल करने होंगे. जाहिर है ये नूरा कुश्ती थी तो मुलायम और अखिलेश के बीच लेकिन धोबी पछाड़ दी गई है बीजेपी के गुजराती स्टाइल गेम को. अब अगर मुलायम दबाव में बेटे के खिलाफ चुनाव लड़ने को मजबूर भी किए जाते हैं तो इससे कोई खास असर नहीं पड़ेगा.