नई दिल्ली: क्या लीची खाकर किसी की मौत हो सकती है. सुनने में भले ही आपको ये बात अटपटी लगे लेकिन बिहार के मुज़फ्फरपुर में बीते दो दशकों में हज़ारों बच्चों की मौत लीची खाने से हो चुकी है.
चमकी की बीमारी के नाम से आतंक का पर्याय बन चुका ये यह रोग हर साल मई जून में सिर उठाता है और कई बच्चों की जान ले लेता है. डाक्टर समझ ही नहीं पाते कि क्या हुआ.
अकेले 2014 में ही 390 बच्चों को इसी बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया जिनमें से 122 की मौत हो गई.
भारत और अमरीका के वैज्ञानिकों की संयुक्त कोशिशों से पता चला है कि खाली पेट ज़्यादा लीची खाने के कारण ये बीमारी हुई है.
करीब तीन साल चली इस रिसर्च के नतीजे मशहूर विज्ञान पत्रिका लैंसेट ग्लोबल में छपे हैं.
वैज्ञानिकों के मुताबिक लीची में हाइपोग्लिसीन ए और मिथाइलेन्साइक्लोप्रोपाइल्गिसीन नाम का ज़हरीला तत्व होता है.
अस्पताल में भर्ती हुए ज़्यादातर बच्चों के खून और पेशाब की जांच से पता चला कि उनमें इन तत्वों की मात्रा मौजूद थी.
ज़्यादातर बच्चों ने शाम का भोजन नहीं किया था और सुबह ज़्यादा मात्रा में लीची खाई थी. ऐसी स्थिति में इस तत्वों का असर ज़्यादा घातक होता है.
बच्चों में कुपोषण और पहले से बीमार होने की वजह भी ज़्यादा लीची खाने पर इस बीमारी का खतरा बढ़ा देती है.
डॉक्टरों ने इलाक़े के बच्चों को सीमित मात्रा में लीची खाने और उसके पहले संतुलित भोजन लेने की सलाह दी है. भारत सरकार ने इस बारे में एक निर्देश भी जारी किया है.
मुज़फ्फरपुर के इलाक़े में लीची खूब पैदा होती है और दुनिया भर के बाज़ारों में यहां से भेजी जाती है.
बीमारी की चपेट में आए बच्चों के मां बाप ने बताया कि लीची पैदा होने वाले दिनों में बच्चे दिन का ज़्यादातर वक्त लीची के बागों में बिताते हैं और इस दौरान अपना सामान्य खानपान भी भूल जाते हैं.