नई दिल्ली: चार राज्यों के चुनाव में आज पहले चरण की वोटिंग हुई और पंजाब और गोवा ने अपने वोट की ताकत का इस्तेमाल किया. इससे पहले तीनों राज्यों में आयोग ने प्रचार पर रोक लगाने का फैसला किया था. ये एक सामान्य प्रक्रिया है. माना जाता है कि लाउड स्पीकर शोरशराबे और लगातार दिमाग पर हो रहे हमले के बीच मतदाता को सोचने का वक्त नहीं मिलता. कहा गया कि इससे मतदाता के फैसले पर असर पड़ता है. हाल ही में जब पीएम मोदी के मन की बात कार्यक्रम पर विवाद उठा तो यही बात की गई. तय हुआ कि मोदी कोई ऐसी बात नहीं बोलेंगे जिससे मतदाता पर असर पड़ता हो और कोई चुनावी बात कही गई हो.
लेकिन क्या सचमुच चुनाव आयोग इस मसले पर सचमुच गंभीर है या ये सिर्फ खानापूर्ति रह गई है. आज मेरठ में प्रधानमंत्री मोदी की रैली थी. उन्हें जो कहना था कहा. कोई नहीं कह सकता कि उनका भाषण चुनावी नहीं था. उन्होंने बीजेपी शासित राज्यों की तारीफ भी की और कांग्रेस पर एक के बाद एक कई हमले किए. जब मोदी ये भाषण दे रहे थे वो पूरे देश में नेशनल मीडिया पर प्रसारित हो रहा था. ठीक वैसे ही पंजाब और गोवा में भी प्रसारण चल रहा था.
क्या रेडियो पर मन की बात से मतदाता का मन बदल सकता है और टीवी पर चुनावी भाषण के प्रसारण से नहीं?
दूसरी बात –
हाल ही में अलग अलग टीवी चैनल्स पर ओपिनियन पोल्स आए, उनमें सभी चैनल्स अलग अलग पार्टी की जीत के दावे प्रसारित कर रहे थे. चुनाव के बीच में ओपिनियन पोल क्या मतदाता की मानसिकता को प्रभावित नहीं करते?
तीसरा मामला-
चुनाव आयोग ने अरविंद केजरीवाल के बयान पर आपत्ति की. कहा कि वो मतदाताओं को धन लेकर दूसरी पार्टियों को वोट देने को कह रहे हैं. बाद में केजरीवाल ने दो और नेताओं के नाम सामने रख दिए. हारकर चुनाव आयोग को उन्हें भी नोटिस देने पड़े. सवाल ये है कि पहले आयोग ने ये बयान संज्ञान में क्यों नहीं लिए?
चौथा केस-
पंजाब में सुबह पूरे दिन मतदान को प्रभावित करने की कोशिश हुई. जगह जगह बिजली गुल हो गई. कही हिंसा हुई तो कहीं बवाल. लगातार कोशिश चल रही थी कि मतदान को धीमा कर दिया जाए और वो ही लोग मतदान कर सकें जो शक्तिशाली पार्टी की तरफ से भेजे गए हैं. इस मामले में भी चुनाव आयोग चुप रहा. अब तक कोई प्रतिक्रिया या फटकार नहीं आई है. किसी अधिकारी पर एक्शन भी नहीं हुआ है.
ये मुट्ठीभर मामले हैं. अगर लिखते जाएं तो काफी ज्यादा लिखा जा सकता है. सीधा सवाल ये है कि चुनाव आयोग कर क्या रहा है? क्या चुनाव आयोग का काम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का नहीं है? अगर है तो साफ साफ दिख रही धांधली पर उसने आंखें क्यों मूंद रखी हैं.
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