अंबानी को मनमानी की छूट देने से बेरोजगारी की नौबत, नौकरियां और 25000 खतरे में

मुंबई:  टेलीकॉम इंडस्ट्री में एक पार्टी को मुफ्त में सेवाएं देने की छूट देने का इतना बुरा असर होगा किसी ने सोचा भी नहीं था. हालात ये हैं कि 25000 लोगों की नौकरियां दांव पर लगी हैं. और उनसे जुड़े लाखों लोगों का क्या होगा किसी को पता नहीं.  रिलायंस के मुकाबले कई कंपनियां आपस में मिल रही हैं और इस कंसोलीडेशन का असर लोगों की नौकरियों पर पड़ रहा है. टेलीकॉम के जानकार इंडस्ट्री के एग्जिक्युटिव्स के बीच इस पर मतभेद है कि कंसॉलिडेशन की वजह से कितनी नौकरियां जाएंगी, लेकिन बड़े पैमाने पर छंटनी से कोई इनकार नहीं कर रहा. टेलिकॉम कंपनियों के रेवेन्यू का 4 से 4.5 प्रतिशत स्टाफ पर खर्च होता है, लेकिन इसकी असल चोट सेल्स और डिस्ट्रीब्यूशन सेगमेंट पर पड़ेगी. एक एचआर हेड ने यह बात कही. उन्होंने बताया कि बड़ी कंपनियों में आमदनी की 22 पर्सेंट तक सेल्स और डिस्ट्रीब्यूशन लागत है. सेक्टर की आमदनी सालाना 1.3 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, जिससे स्टाफ कॉस्ट करीब 34,000-35,000 करोड़ रुपये बैठती है.

25,000 कर्मचारियों पर तलवार

एक अन्य एचआर हेड ने बताया, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि हेड ऑफिस और सर्कल (ऑफिस) में काम करने वालों पर छंटनी की तलवार लटक रही है.’ उन्होंने बताया कि इससे 10,000-25,000 लोगों की जॉब जा सकती है. वहीं, जो लोग परोक्ष रूप से उद्योग से जुड़े हैं, वैसे प्रभावित लोगों की संख्या 1 लाख तक पहुंच सकती है. इकॉनामिक टाइम्स ने अपनी खबर में दावा किया है कि उसने दर्जन भर ऐनालिस्टों, रिक्रूटर्स और कंपनी एग्जिक्युटिव्स से बात की. उन्होंने बताया कि टेलिकॉम कर्मचारी आश्वासन के बावजूद नौकरी को लेकर डरे हुए हैं. कर्मचारी ने इस खबर के लिए नाम नहीं छापने की शर्त पर बात की. एऑन हेविट कंसल्टिंग के सीईओ संदीप चौधरी ने बताया, ‘कंसॉलिडेशन के बाद ऑपरेशंस, वर्कफोर्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर के अधिक-से-अधिक इस्तेमाल पर फोकस होगा, जिससे करीब 25 पर्सेंट कर्मचारी की जरूरत नहीं रह जाएगी.’ भारतीय टेलिकॉम इंडस्ट्री से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से 3 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है. मर्जर की बात से जुड़े टेलिकॉम कंपनी के एक बड़े अधिकारी ने कहा कि कंसॉलिडेशन के बाद अगले डेढ़ साल में एक-तिहाई लोगों की जरूरत नहीं रह जाएगी.

किस-किस का मर्जर?

वहीं, एक अन्य टेलिकॉम कंपनी के सीनियर एग्जिक्युटिव ने बताया, ‘लोग हमसे संपर्क कर रहे हैं. वे नौकरी की तलाश में हैं. सबकी कुछ-न-कुछ जिम्मेदारियां हैं.’ उनकी कंपनी अभी किसी अन्य फर्म के साथ मर्जर की बातचीत नहीं कर रही है. कुमार मंगलम बिड़ला की आइडिया सेल्युलर और वोडाफोन पीएलसी के बीच मर्जर की बात चल रही है. दोनों कंपनियां रिलायंस जियो को टक्कर देने के लिए साथ आना चाहती हैं, जिसने मुफ्त डेटा और वॉयस सर्विस देकर बाजार में उथलपुथल मचा दी है. एयरसेल और अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशंस के बीच भी मर्जर की बातचीत चल रही है. हालांकि, एयरसेल के खिलाफ एक मुकदमे की वजह से इस सौदे पर तलवार लटकी हुई है. रूस की एमटीएस का आरकॉम में मर्जर हो चुका है, जबकि नॉर्वे की टेलिनॉर या तो आरकॉम-एयरसेल के साथ मिलेगी या उसे एयरटेल खरीदेगा.

टेलिकॉम टावर कंपनियों पर भी असर

इसका असर टेलिकॉम टावर कंपनियों पर भी हुआ है. पिछले साल अमेरिकन टावर कंपनी (एटीसी) ने वायोम नेटवर्क्स को खरीदा था और उसके बाद कर्मचारी की संख्या में एक-तिहाई कटौती की थी. यह जानकारी सूत्रों ने दी है. इसके बाद ब्रुकफील्ड ने 1.6 अरब डॉलर में आरकॉम के टावर खरीदे. अभी हर टावर कंपनी डील की बातचीत कर रही है. आइडिया और वोडाफोन अपने स्टैंडअलोन बिजनस को बेचना चाहती हैं और टावर विजन जैसी छोटी कंपनियां भी सौदे की बातचीत कर रही हैं. बड़ी भारती इन्फ्राटेल और इंडस टावर्स के मालिकाना हक में भी बदलाव हो सकता है. मर्जर की बात कर रही एक टेलिकॉम कंपनी के मिड लेवल एग्जिक्युटिव ने बताया, ‘मैंने बच्चों के साथ अपनी फॉरन ट्रिप कैंसल कर दी क्योंकि मैं कुछ रकम बचाना चाहता था. पता नहीं आगे क्या हो.’ वह इस कंपनी में चार साल से काम कर रहे हैं.

परोक्ष रूप से जुड़े लोगों पर भी संकट

कंपनियों के डेटा के मुताबिक आइडिया, वोडाफोन, आरकॉम और एयरसेल में 48,000 लोग काम करते हैं. बिजनस में कमी के बावजूद टाटा टेलिकॉम में 7,000 लोग काम कर रहे हैं. एचआर हेड्स का कहना है कि अगर किसी टेलिकॉम कंपनी में एक आदमी को सीधा रोजगार मिला है तो उस पर बाहरी एजेंसी के चार लोग सेल्स हैंडल कर रहे हैं. इसमें नेटवर्क और बीपीओ कॉन्ट्रैक्ट्स के लोग भी शामिल हैं और यह अनुपात 1:6 का है. सेंट्रल और सर्विस एरिया लेवल पर सर्किल चीफ, एचआर और फाइनैंस टीम में छंटनी हो सकती है क्योंकि कंसॉलिडेशन के बाद कंपनियां एक ही काम के लिए दो लोगों को नहीं रखेंगी. इससे मैनेजरों के बीच कंपनी के अंदर और दूसरी कंपनियों के समकक्षों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव बढ़ गया है. मर्जर की बातचीत कर रही एक टेलिकॉम कंपनी के सर्कल चीफ ने कहा, ‘यह बहुत बुरा वक्त है. जब एक कंपनी फ्री में सर्विस दे रही हो, तब मजबूत रिजल्ट देना संभव नहीं है.’ इंडस्ट्री में कॉम्पिटीशन बढ़ने के चलते मर्जर की बातचीत तेज हुई है. जियो का फ्री ऑफर मार्च तक चलेगा. इसके बाद वह कुछ और इंसेंटिव ला सकता है. इससे हर टेलिकॉम कंपनी की प्रति ग्राहक आमदनी कम हुई है.

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