नई दिल्ली: क्या यूपी में पेड न्यूज़ का खेल हो रहा है? क्या पैसे लेकर यूपी के अखबार एक खास पार्टी को फायदा पहुंचाने में जुटे हैं? एक के बाद एक चुनाव आयोग अखबारों को नोटिस दे रहा है और उन पर एक्शन ले रहा है. खास बात ये हैं कि ये सभी अखबार एक ही पार्टी के पक्ष में कानून का उल्लंघन करते पकड़े गए हैं.
सबसे पहले बात करते हैं दैनिक जागरण की. दैनिक जागरण की अंग्रेजी वेबसाइट पर यूपी चुनाव के पहले चरण के बाद एक्जिट पोल बताया गया. ये साफ तौर पर चुनाव आयोग के नियमों का उलंघ्घन है और इसके बाद ग्रुप के ऑनलाइन एडिटर की गिरफ्तारी हुई. बाद में मालिक का बयान आया कि ये एक्जिट पोल विज्ञापन विभाग ने वेबसाइट पर डाला था यानी इसके लिए इस संस्थान ने पैसे लिए थे.
मतलब साफ है कि अगर संस्थान ने पैसे लिए तो उसी पार्टी से लिए जिसके पक्ष में ये एक्जिट पोल छापा गया. अगर इसका मतलब निकाला जाए तो ये होगा कि बीजेपी ने दैनिक जागरण को पैसे देकर एक एक्जिट पोल छपवाया जिसमें बीजेपी को जीतता दिखाया गया था. आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि भुगतान कितना मोटा रहा होगा कि चुनाव आयोग ने सभी चरणों में वोटिंग पूरे होने तक एक्जिट पोल करने या इसकी खबर देने पर रोक लगाई है. उसके बावजूद ये पोल छापा गया.
चुनाव आयोग ने पुलिस को जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 126 ए के तहत वोट वाले सभी 15 जिलों में अखबार के खिलाफ एफआईआर के आदेश दे दिए. जागरण ग्रुप ने अपनी सफाई में कहा है कि एक्जिट पोल सिर्फ वेबसाईट पर डाला गया और अखबार में नहीं. दैनिक जागरण के सीईओ और मुख्य संपादक संजय गुप्ता ने ये भी बताया कि इस पोल को विज्ञापन विभाग ने वेबसाइट पर छापा था.
सिर्फ दैनिक जागरण ही नहीं वाराणसी में हिंदी अखबार अमर उजाला को भी चुनाव आयोग से चेतावनी मिली है. अमर उजाला ने फ्रंट पेज पर एक प्राइवेट बिल्डर का विज्ञापन छपा, जिसमें प्रधानमंत्री आवास योजना की बढ़ चढ़कर तारीफ की गयी थी.
पहले हम साफ कर दें कि हम किसी भी तरह से दैनिक जागरण के नियमों के उल्लंघन का समर्थन नहीं कर रहे हैं. ये गलती थी और इस पर चुनाव आयोग का एक्शन लेना उचित है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि चुनाव आयोग ने अखबार पर एक्शन लेने में तो तेज़ी दिखाई लेकिन उन नेताओं पर एक्शन नहीं लिया जो असल फायदा उठा रहे थे. ऐसे मामलों में अब तक एफआईआर तो दर्ज हुई हैं लेकिन गिरफ्तारियां कितनी हुई है.
दैनिक जागरण के केस में इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक ये एक विज्ञापन था. क्या जांच नही होनी चाहिए कि इस विज्ञापन के पैसे किसने दिए. और क्या सोशल मीडिया और व्हॉटसप के जमाने में चुनाव आयोग के नियम पुराने पड़ गए है. आवाज अड्डा में हम पूछ रहें कि आचार संहिता के मामले में चुनाव आयोग नेताओं पर सख्त कार्रवाई करने से कतराता है.